Tuesday, October 30, 2018

Shaayari

वैसे तो फ़ूल सारे पसंद हैं इस बग़ीचे के
लेकिन महकूँ तो महकूँ मैं गुलाब की तरह ।
कहा वो मेरे आँगन मे खेल कर बड़ा हुआ
आज वो धूप भी मुझे देता है पैमाने की तरह ।
यहाँ कोई हिंदू कोई मुसलमान कोई सिक्ख कोई ईसाई
जियूँ तो जियूँ मैं यहाँ इंसान की तरह ।
वैसे तो सब एक दूसरे के रंग में रंगे हैं
गर बुलाया जाऊँ मैं तो रहूँ उनके तौर तरीक़ों की तरह।
अब बस एक यही ख़्वाहिश हैं की हर तरफ़ उजाला हो
क्यूँ हीं ना जलना पड़े मुझे जुगनु की तरह । - अनिल

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